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आज नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की विधि-विधान से पूजा कैसे करे ।।

Byrashmi kashyap

Apr 4, 2022
आज नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की विधि-विधान से पूजा कैसे करे ।

आज नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की विधि-विधान से पूजा कैसे करे ।

 

माँ चंद्रघंटा

आज नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की विधि-विधान से पूजा कैसे करे ।

आज नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की विधि-विधान से पूजा कैसे करे ।

आज नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की विधि-विधान से पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना करने से भक्त निर्भय और सौम्य बनता है.

मां का यह रूप सुंदर, मोहक और अलौकिक है. मां चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियां सुनाई देती हैं. ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं।।

मां का स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है. इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है. इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है. इनके दस हाथ हैं. इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं. इनका वाहन सिंह है. इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की होती है.

ऐसे करें देवी की पूजा

तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा की आराधना करने के लिए सबसे पहले पूजा स्थान पर देवी की मूर्ति की स्थापना करें.

इसके बाद इन्हें गंगा जल से स्नान कराएं.

इसके बाद धूप-दीप, पुष्प, रोली, चंदन और फल-प्रसाद से देवी की पूजा करें.

अब वैदिक और संप्तशती मंत्रों का जाप करें.

माां के दिव्य रुप में ध्यान लगाएं.

ध्यान लगाने से आप अपने आसपास सकारात्मक उर्जा का संचार करते हैं.

मां चंद्रघंटा मंत्र 
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता.
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥

 

ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्.
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्.
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्.
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्.
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥

 

स्तोत्र पाठ
आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्.
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्.
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्.
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥

मां चंद्रघंटा व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, दानवों के आतंक को खत्म करने के लिए मां दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का स्वरूप लिया था. महिषासुर नामक राक्षस ने देवराज इंद्र का सिंहासन हड़प लिया था. वह स्वर्गलोक पर राज करना चाहता था. उसकी यह इच्छा जानकार देवता बेहद ही चितिंत हो गए. देवताओं ने इस परेशानी के लिए त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश की सहायता मांगी. यह सुन त्रिदेव क्रोधिक हो गए. इस क्रोध के चलते तीनों के मुख से जो ऊर्जा उत्पन्न हुई उससे एक देवी का जन्म हुआ. भगवान शंकर ने इन्हें अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने अपना चक्र प्रदान किया. फिर इसी प्रकार अन्य सभी देवी देवताओं ने भी माता को अपना-अपना अस्त्र सौंप दिया. वहीं, इंद्र ने मां को अपना एक घंटा दिया. इसके बाद मां चंद्रघंटा महिषासुर का वध करने पहुंची. मां का यह रूप देख महिषासुर को यह आभास हुआ कि इसका काल नजदीक है. महिषासुर ने माता रानी पर हमला बोल दिया. फिर मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार कर दिया. इस प्रकार मां ने देवताओं की रक्षा की ।।

 

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