विधानसभा सीटों में काशीपुर विधानसभा सीट का चुनाव कुछ ज्यादा ही दिलचस्प रहने वाला है क्योंकि उत्तराखंड की स्थापना होने के बाद 2002 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ। जब से अब तक चार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं और चारों बार भाजपा के विधायक हरभजन सिंह चीमा ने अपनी जीत का परचम लहराया। और इस बार भाजपा को जीत दिलाने वाले विधायक हरभजन सिंह चीमा का चुनाव लड़ना नामुमकिन सा है। उत्तराखंड की स्थापना होने के बाद काशीपुर विधानसभा की सीट पर होने वाले चुनाव में युद्ध में भाजपा के योद्धा के सामने कांग्रेस का योद्धा हमेशा बोना ही साबित होता हुआ दिखाई दे रहा है। काशीपुर विधानसभा सीट पर भाजपा विधायक हरभजन सिंह चीमा को हराना कांग्रेस के लिए लोहे के चने चबाने जैसा साबित हो रहा है अगर बात करे पिछले दो विधानसभा चुनाव जिसमे भारतीय जनता पार्टी के विधायक हरभजन सिंह चीमा से 2012 में 31,734 मतों के साथ कांग्रेस के मनोज जोशी को हराया था. फिर 2017 में विधायक हरभजन सिंह चीमा ने मनोज जोशी को 20114 मतों के अंतर से हराया था. लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव के समीकरण कुछ और गवाही देते हुए दिखाई दे रहे हैं।
क्योंकि इस बार भारतीय जनता पार्टी के विधायक हरभजन सिंह चीमा मोदी जी के एज फैक्टर में नहीं आते इसलिए विधानसभा चुनाव भारतीय जनता पार्टी के विधायक हरभजन सिंह चीमा के लिए असंभव सा है इसलिए विधायक हरभजन सिंह चीमा अपने पुत्र त्रिलोक सिंह चीमा को विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटे हुए हैं। तो वहीं विधायक चीमा का कहना है कि अगर कांग्रेस ने इस बार मनोज जोशी को काशीपुर विधानसभा से प्रत्यार्शी बनाया पहले तो हालात ये थे कि मनोज जोशी मुझे जीता देख काउंटिंग से भाग जाते थे और अब मेरे पुत्र के सामने मनोज जोशी काउंटिंग स्थल तक ही नहीं जाएंगे। क्योकि ऐतिहासिक जीत होगी
कांग्रेस की हारने की वजह एक मजबूत दावेदार न होना भी हो सकता है और हर बार काँग्रेस हारे वे प्रत्याशी को काशीपुर से कांग्रेस का प्रत्यार्शी बनाती हैं फिलहाल 35 सालो से लगातार काशीपुर मे काँग्रेस हारती आ रही है। कांग्रेस अपनी हार का ठीकरा अन्य पार्टीयो के दावेदारों पर फोड़ रही है।
उत्तराखंड की स्थापना होने के बाद काशीपुर विधानसभा सीट पर भाजपा ने अपना कब्जा जमा रखा है। 2002 विधानसभा चुनाव से कांग्रेस को हराती हुई आ रही है। तो इस बार देखने वाली बात होगी लगातार हारती आ रही कांग्रेस 2022 के चुनाव में किस पर दांव खेलती हैं। या फिर एक बार फिर उसी चेहरे पर दांव खेलेगी जो हर बार भाजपा के सामने बौना साबित हुआ। और दो बार भाजपा के सामने हार चुका है या फिर किसी पैरासुट चेहरे पर दांव खेलकर अपनी खोई हुई साख को बचाईगी ।