जर्रे जर्रे में बसी है अहिल्याबाई की कहानियां
जर्रे जर्रे में बसी है अहिल्याबाई की कहानियां इंदौर के साथ पूरे मालवा-निमाड़ में रानी अहिल्या बाई की कहानियां जर्रे-जर्रे में बसी हैं। वे न सिर्फ परम शिव भक्त थीं बल्कि अपनी प्रजा का भी बहुत ख्याल रखती थीं। सोमवार को मां अहिल्याबाई की 296वीं जयंती है।
आइये उनसे जुड़ी कुछ बातें जानते हैं जो उनके वृहद व्यक्तित्व का आभास कराती हैं। आज हम जिस सीड बाल की बात करते हैं इसका अस्तित्व उस वक्त से है जब मालवा राज्य की बागडोर देवी अहिल्याबाई होलकर के हाथों में थी।
अहिल्याबाई प्रतिदिन 11 हजार पार्थिव शिवलिंग का पूजन करती थी। मिट्टी से शिवलिंग बनाते वक्त वे हरेक शिवलिंग में अनाज के दाने या यूं कहें बीज रख देती थीं।
अहिल्याबाई एक दार्शनिक और कुशल राजनीतिज्ञ थीं. इसी वजह से उनकी नजरों से राजनीति से जुड़ी कोई भी बात छुप नहीं सकती थी. महारानी की इन्हीं खूबियों के चलते ब्रिटिश इतिहासकार जॉन कीस ने उन्हें ‘द फिलॉसोफर क्वीन’ की उपाधि से नवाजा था. जानकारी के मुताबिक महारानी अहिल्याबाई होल्कर का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के चौंडी गांव में हुआ था, जिसे वर्तमान में अहमदनगर के नाम से जाना जाता है.
अहिल्याबाई होल्कर एक शिक्षित महिला थीं. उन्होंने कई साल इंदौर शहर पर राज किया और एक सफल प्रशासक के रूप में जानी गईं. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने पूरे देश की सड़कों को बनवाया, पानी की टंकियां लगवाईं और धर्मशालाओं का निर्माण कराया था.